pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

कविता

11

रिक्त चषक रहने दो मेरा अभी सुनो चस्का पड़ जाए न मादक धारों का अभी लोटने दो धरती की रेणू में स्वप्न जगाओ नहीं नयन में तारों का अभी कहाँ दृष्टव्य कहो अक्षत सुवास जो करता है पृथक -पृथक चन्दन रज को ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है