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पिता

4.4
613

पिता तुम रहना तुम रहना क्यूंकि अनजाने ही अब तक जीवन की एक डोर का सिरा तुम्हारी ऊँगली से बंधा है और उसी से बंधा है बचपन इसीलिए बचपन अब तक बचा है और बची रह गयी है तुम्हारी छाँह जिस के नीचे अभी भी मै ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ganesh Jadhav
    19 মে 2023
    मुझे आपका लेखन पसंद है। मैंने भी बहुत प्रयास के बाद एक कविता तैयार की है, आपसे विनम्र निवेदन है कि इसे पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव और गलतियों से मुझे अवगत कराएं।
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    19 অক্টোবর 2015
    "क्यूंकि " जैसे शब्द सबकुछ कह रहे हैं । राष्ट्र भाषा का अपमान करती  एक अत्यंत सारहीन व अप्रासांगिक कविता ।
  • author
    Sweta Pant "Seemu"
    09 জুলাই 2022
    wow... Bhut hi achhi lines Please Meri stories and poems bhi pdhiye
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ganesh Jadhav
    19 মে 2023
    मुझे आपका लेखन पसंद है। मैंने भी बहुत प्रयास के बाद एक कविता तैयार की है, आपसे विनम्र निवेदन है कि इसे पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव और गलतियों से मुझे अवगत कराएं।
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    19 অক্টোবর 2015
    "क्यूंकि " जैसे शब्द सबकुछ कह रहे हैं । राष्ट्र भाषा का अपमान करती  एक अत्यंत सारहीन व अप्रासांगिक कविता ।
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    Sweta Pant "Seemu"
    09 জুলাই 2022
    wow... Bhut hi achhi lines Please Meri stories and poems bhi pdhiye