पिता तुम रहना तुम रहना क्यूंकि अनजाने ही अब तक जीवन की एक डोर का सिरा तुम्हारी ऊँगली से बंधा है और उसी से बंधा है बचपन इसीलिए बचपन अब तक बचा है और बची रह गयी है तुम्हारी छाँह जिस के नीचे अभी भी मै ...
मुझे आपका लेखन पसंद है। मैंने भी बहुत प्रयास के बाद एक कविता तैयार की है, आपसे विनम्र निवेदन है कि इसे पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव और गलतियों से मुझे अवगत कराएं।
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