अपना नाम कहानी में पा कर मैं खुद को पढ़ने से रोक न पाई।🙂 कहानी कुछ इस प्रकार से शुरू होती है - नीला अपनी प्यारी बेटी शैली के साथ सालों बाद गाँव आई हुई है। जब वह शहर में अपना घर संसार बसाने में उलझी हुई थी तभी पीछे गाँव में क्या हो रहा हैं उससे वह अंजान है। उसने सोचा था गाँव जाते ही सबसे घंटोंभर बातें होगी, चाचा के घर से भी सब मिलने आये हुए होंगे और माहौल जमेगा। लेकिन उसकी अपेक्षा से विपरीत ही हुआ। माँ ने अनमन ही थोड़ी बातें करी और फिर खाना लगा दिया। कुछ तो हुआ था जिससे सब परेशां थे। खाने पर उसने छोटे भाई दीपक का बेसब्री से इंतज़ार किया लेकिन वो नहीं आया। पूरी कहानी बताकर पढ़ने का मज़ा किरकिरा करना नहीं चाहती हूँ लेकिन कुछ एहसास और जज्बात इतने गहरे होते है की ऐसी घटनाओं का वास्तविक न होना मानना गलत होगा।
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अपना नाम कहानी में पा कर मैं खुद को पढ़ने से रोक न पाई।🙂 कहानी कुछ इस प्रकार से शुरू होती है - नीला अपनी प्यारी बेटी शैली के साथ सालों बाद गाँव आई हुई है। जब वह शहर में अपना घर संसार बसाने में उलझी हुई थी तभी पीछे गाँव में क्या हो रहा हैं उससे वह अंजान है। उसने सोचा था गाँव जाते ही सबसे घंटोंभर बातें होगी, चाचा के घर से भी सब मिलने आये हुए होंगे और माहौल जमेगा। लेकिन उसकी अपेक्षा से विपरीत ही हुआ। माँ ने अनमन ही थोड़ी बातें करी और फिर खाना लगा दिया। कुछ तो हुआ था जिससे सब परेशां थे। खाने पर उसने छोटे भाई दीपक का बेसब्री से इंतज़ार किया लेकिन वो नहीं आया। पूरी कहानी बताकर पढ़ने का मज़ा किरकिरा करना नहीं चाहती हूँ लेकिन कुछ एहसास और जज्बात इतने गहरे होते है की ऐसी घटनाओं का वास्तविक न होना मानना गलत होगा।
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