हवाओं में तिरी थीं अभी भी रात की उतरती स्याही, और मैं इकट्ठा कर रही अपना सारा असबाब- पानी का बोतल, बिस्कुट, और दो-चार नमकीन; कंधे पर बैग टांग और हाथों में ले लम्बी छङी निकल पङी ढूंढने पर्वत पर ...
रात लम्बी है तो है, बर्फबारी है तो है;
मौसमों के दरमियां एक जंग जारी है तो है,
मूर्ति सोने की निरर्थक वस्तु है उसके लिए
काँच की गुङिया अगर बच्चे को प्यारी है तो है।
............................साभार
सारांश
रात लम्बी है तो है, बर्फबारी है तो है;
मौसमों के दरमियां एक जंग जारी है तो है,
मूर्ति सोने की निरर्थक वस्तु है उसके लिए
काँच की गुङिया अगर बच्चे को प्यारी है तो है।
............................साभार
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