बचपन से ही तो कहानियां सुनते आ रहा हूँ, गाँव मे मेरे पिताजी अपने ग्रामीण भाषा मे लोगों को पूरी रात तक कहानियां सुनाने के लिए प्रसिद्ध हैं।
टेलीविजन के आने से पहले लोगों की मनोरंजन नृत्य - नाटक और कहानियों तक सीमित था!
कहानियां कभीं नहीं मरती! यही उत्सुकता लिखने के लिए विवश करती है। और लेख जारी है..