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पक्का करना...

3.5
1607

ट्रिन.. ट्रिन.. हैलो नमस्ते मामा जी-नमस्ते बेटा!जरा मम्मी को फोन देना ऐसा रिशु के मामाजी ने कहा! हैलो हाँ दीदी कल रिशु को तैयार रखना लड़के वाले आ रहे हैं देखने! घर पर ही आने को कह रहे थे! थोड़ा ...

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लेखक के बारे में
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शालिनी साहू

शब्दों का मूक हो जाना पीड़ा की अन्तिम परिणति है। घाव गहरे से नासूर बने जख़्म की अन्तिम परिणति है पूर्ण कहाँ होता है हर स्वप्न रसातल की शरण में वेदना के सिन्धु में गोते लगाना अधूरे स्वप्न की अन्तिम परिणति है । ढुलक जाये जब हजारों मोती पलकों की कोरों से स्वयं को समेट लेना तब जीवन की अन्तिम परिणति है। पगडण्डियों पर चलना कहाँ आसान जब पथ का सही ज्ञान न हो अनुमान के सहारे चलते जाना तब गन्तव्य की अन्तिम परिणति है । बिखरने में अस्तित्व है सिमटने का सामने था वह स्वप्न जो अब पलकों की कोरों में ही रह गया स्वयं को इस घड़ी से उबार लेना ही जीने की अन्तिम परिणति है। शालिनी साहू ऊँचाहार, रायबरेली (उ0प्र0)

समीक्षा
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  • author
    Sukhdarshan Sharma
    24 सितम्बर 2018
    kuch sahi kuch galat
  • author
    speak truth with facts
    25 अगस्त 2020
    kuch story lgi hi nhi
  • author
    तीन पानी "अरुण"
    02 मई 2020
    good
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    Sukhdarshan Sharma
    24 सितम्बर 2018
    kuch sahi kuch galat
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    speak truth with facts
    25 अगस्त 2020
    kuch story lgi hi nhi
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    तीन पानी "अरुण"
    02 मई 2020
    good