*ओस की एक बूंद* मैं ओस की एक बूंद हूँ कल नहीं देख पाऊँगी आज गुलशन को सज़ा दूं बस फिर वापस चली जाऊंंगी बुंदों का जीवन भी जाने कितना प्यासा है साथ-साथ एक साथ पत्ते पर पडी मूक सी एक दूजे को देखती है ...
मैं कोई बहुत बड़ी लेखक या कवयित्री तो नहीं हूं लेकिन जब भी दिल में विचारों का समंदर उठता है तो उसे शब्दों का रूप देकर सहेज़ कर रख लेती हूँ और इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है शब्द और कलम से बड़ा कोई और दोस्त नहीं,
नई नई कहानी और कविता पड़ने में बहुत आनंद आता है, हर कहानीकार और कविता के रचनाकारों को सादर प्रणाम जो जीवन को जीने की सुन्दर कला हमें प्रदान करते हें 😊
किरन मिश्रा
सारांश
मैं कोई बहुत बड़ी लेखक या कवयित्री तो नहीं हूं लेकिन जब भी दिल में विचारों का समंदर उठता है तो उसे शब्दों का रूप देकर सहेज़ कर रख लेती हूँ और इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है शब्द और कलम से बड़ा कोई और दोस्त नहीं,
नई नई कहानी और कविता पड़ने में बहुत आनंद आता है, हर कहानीकार और कविता के रचनाकारों को सादर प्रणाम जो जीवन को जीने की सुन्दर कला हमें प्रदान करते हें 😊
किरन मिश्रा
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