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"निंदक नियरे राखिए"

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"निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय" इस दोहे में कबीर दास जी ने बताया है कि हमें अपने अपनी निंदा करने वालों को अर्थात  आलोचकों को अपने आस पास ही रखना चाहिए ...

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मन के भावों को शब्दों में पिरोने का प्रयास...✍

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