" निंदक नियरे राखिये ; आँगन कुटी छवा य , बिन साबुन पानी बिना ; निर्मल करत सुभाय" कबीर दास जी का यह दोहा हर काल में सामयिक ही रहा है किन्तु , इसी दोहे को अधिकांश लोग अपने उपयोग में नहीं लाते। ...
लगभग पचास वर्ष से साहित्य की विविध विधाओं मे लेखन। मूलतः कविता और उसके व्यतिरिक्त गीत, दोहे, हाइकु, मुक्तक,ग़ज़ल, कथा, उपन्यास और नाटक। सात पुस्तकें प्रकाशित। एक पुस्तक संपादित। तीन पुस्तकें प्रकाशनाधीन। // इसके व्यतिरिक्त एक रंगमचीय कलाकार, रेडियो और टीवी के लिए पार्श्व स्वर (voice over)
सारांश
लगभग पचास वर्ष से साहित्य की विविध विधाओं मे लेखन। मूलतः कविता और उसके व्यतिरिक्त गीत, दोहे, हाइकु, मुक्तक,ग़ज़ल, कथा, उपन्यास और नाटक। सात पुस्तकें प्रकाशित। एक पुस्तक संपादित। तीन पुस्तकें प्रकाशनाधीन। // इसके व्यतिरिक्त एक रंगमचीय कलाकार, रेडियो और टीवी के लिए पार्श्व स्वर (voice over)
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बधाई हो! निंदक नियरे राखिये; आँगन कुटी छवाय प्रकाशित हो चुकी है।. अपने दोस्तों को इस खुशी में शामिल करे और उनकी राय जाने।