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निमिषा: इत्तू सा लम्हा 😉

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एक रोज़ फुरसत में मिली थी तुम हाथ थाम के बैठी थी तुम्हारा मैं कितना कुछ कहना था तुमसे तुम्हारी उंगली थाम के उन बीते सालों में गुम हो जाना चाहती थी मीलों का रास्ता तय करना था उस कल में जीना था ...