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नेकी कर दरिया में डाल

4.6
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(1) "क्यों बाबू श्यामलाल जी! इसी को न कहते हैं 'नेकी कर दरिया में डाल।' एक दिन आप लोग मुझे ‘देवता’ की संज्ञा दे रहे थे और आज मैं आपलोगों के लिए ‘दानव’ बन गया। मेरी सहृदयता का अच्छा फल प्रदान किया आप ...

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लेखक के बारे में

"प्रतिलिपि" रचनात्मक संसार से जुड़े मेरे प्रिय विद्व बंधुजन, मैं, श्रीराम पुकार शर्मा, मूल निवासी ग्राम - अंकोराह, जिला - औरंगाबाद, (बिहार) से सम्बंधित हूँ। वर्तमान में जीविकोपार्जन हेतु श्री जैन विद्यालय, हावड़ा, पश्चिम बंगाल, (गैर सरकारी) में सेवारत्त हूँ। शिक्षा के क्ष्रेत्र में साधारण रूप से हिंदी (एम.ए), तथा बी. एड हूँ। हिंदी रचना के क्षेत्र में समयानुसार प्रासंगिक कहानी, साहित्यिक निबन्ध, एकांकी और लघु नाटक में मेरी विशेष रुचि है। मैं हर किसी पर बहुत जल्दी विश्वास कर लेता हूँ। फिर भी बहुत कम ही धोखा खाया हूँ। सामाजिक, भेद-भाव, अनाचार, राष्ट्रीय क्षति, बुजुर्गों व गरीबों पर अत्याचार या अवहेलना देख कर मन दुखी हो जाता है। अपने कार्य, व्यक्तव्य,, लेखन या फिर क्रिया-कलापों से किसी का दिल दुखाना मुझे अपराधबोध प्रतीत होता है। यही कारण है कि मेरी अधिकांश रचनाओं में उपरोक्त विषय-वस्तु तथा उनसे सम्बन्धित पीड़ा ही सर्वाधिक व्यक्त होती रही है। प्रकृति से लगाव है, पर विशेष कारणवश उससे दूर भी रह रहा हूँ। इसका मुझे सर्वदा मन में टिस रहता है। लोगों में परस्पर प्रेम, सौहार्द्र, भाई-चारा रहे। सबकी उन्नति हो, यही हार्दिक इच्छा है।

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