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नौलखा हार

4.4
12047

फोन आया था कि राजधानी एक्सप्रेस में एक सीट है चले आवें. माताजी ने खाना-पीना छोड़ रखा है. बेहोश हैं. छुट्टी लेकर पहले डेरा आना था उसके बाद ट्रेन के लिए निकलना था. पहले रिक्शा फिर बस फिर ऑटो फिर ट्रेन ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Akansha Sahu
    10 फ़रवरी 2018
    heart touching story
  • author
    Jatinder Chhabra
    14 फ़रवरी 2019
    जब मनुष्य कुकर्म करता है , उसे तब खयाल भी नही आता कि जाने किस रूप में उसके कर्मो का प्रतिफल उसे भोगना पडेगा अपने अपने हिस्से का दुख हर कोई पाता है , किसी ना किसी रूप में यही मनुष्य की नियति है
  • author
    Nirupa Verma
    17 अप्रैल 2020
    bhut hi marmik lekhni h,,, bhut hi shandar aur behtarin bhi h,,, it's amazing story ke liye jitani bhi tariff Kru km hi pada jayegi,,, thanks for the story sirji...
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    Akansha Sahu
    10 फ़रवरी 2018
    heart touching story
  • author
    Jatinder Chhabra
    14 फ़रवरी 2019
    जब मनुष्य कुकर्म करता है , उसे तब खयाल भी नही आता कि जाने किस रूप में उसके कर्मो का प्रतिफल उसे भोगना पडेगा अपने अपने हिस्से का दुख हर कोई पाता है , किसी ना किसी रूप में यही मनुष्य की नियति है
  • author
    Nirupa Verma
    17 अप्रैल 2020
    bhut hi marmik lekhni h,,, bhut hi shandar aur behtarin bhi h,,, it's amazing story ke liye jitani bhi tariff Kru km hi pada jayegi,,, thanks for the story sirji...