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नशे की रात ढल गयी. 3

4.3
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उनदिनों सीवान एक कस्बे की तरह ही था... अपने एडोलेशेंस(किशोरावस्था)में पाँव रखते हुए एक अजीब सी उमंग ...हावी थी ..मन हिरणों सा कुलाचें भर रहा था । हर गम को धुँए में उड़ाने के दिन थे..फूलों के रंग ...

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दया शंकर शरण

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