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मुसाफिर ट्रेन के

3.5
6378

ट्रेन के दरवाजे पर खड़े लोग बाहर की ओर देखते हैं, लेकिन न तो उन्हें जल्दी उतरने की उम्मीद है और न अंदर कहीं सीट पाने की उम्मीद... बिना उम्मीद के इस सफ़र में मै भी एक कोने दुबका बैठा हूं या कभी कभी ...

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लेखक के बारे में
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समीर तिवारी

हे पथिक! ठहरो। तनिक रुको। तुम थक गए होगे। अगर तुम्हारे पास थोड़ा समय हो तो मेरी कुछ पंक्तियाँ पढ़कर अपनी थकान ‌मिटा लो।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Umesh Chavda
    10 अप्रैल 2020
    लगता है कि कहानी अधुरी है दोस्त आगे लिखो दुसरा भाग लिखो
  • author
    Prity Subba
    08 अप्रैल 2020
    short and sweet but nice story
  • author
    Shubham Kumar
    15 जुलाई 2020
    good
  • author
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Umesh Chavda
    10 अप्रैल 2020
    लगता है कि कहानी अधुरी है दोस्त आगे लिखो दुसरा भाग लिखो
  • author
    Prity Subba
    08 अप्रैल 2020
    short and sweet but nice story
  • author
    Shubham Kumar
    15 जुलाई 2020
    good