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मुक्ति..(द्वितीय पुरस्कार से पुरस्कृत)

26601
4.7

अपने घर के बगीचे में कांपते हाथों से फूलों में पानी सीजती वह बूढ़ी औरत कुछ बुदबुदा रही थी। ऐसे ही... ऐसे ही... सींचा था उसे भी। पानी से..? नहीं..खून से,मेरा अंशु,मेरा बेटा, यह कहते हुए उस बूढ़ी ...