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मेयार सनेही की ग़ज़लें

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न छुपते हैं न छुपकर बोलते हैं हम आईना हैं मुँह पर बोलते हैं गुनाहों को छुपाओगे कहाँ तक ये अक्सर सर पे चढ़कर बोलते हैं ग़ज़ल के पाँव धोकर पीने वाले ज़माने भर से बेहतर बोलते हैं तुम्हें ...

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Tanzil Nigar
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