11 दिसम्बर 2014, लॉ फर्म दिल्ली, सुबह के 10 बजे अवंतिका अपने ऑफिस पहुँची।कनॉट प्लेस में स्थित उसके ऑफिस में सुबह साढ़े नौ बजे से अफ़रा-तफ़री मची रहती है। उसकी एक वाज़िब वज़ह अवंतिका खुद है, उसके ऑफिस ...
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अध्याय 2
अभिधा शर्मा
4.8
शर्मा विला, ई-5, कोह-ए-फ़िज़ा रोड, भोपाल, मध्य प्रदेश। शर्मा विला, याने कि मेरा घर। अब आप सोचेंगे कि मैं कौन? मैं पीयूष, पीयूष शर्मा। अब आपके मन में तुरंत एक बात कौंध गयी होगी कि दो-दो बार पीयूष क्यों कहा मैंने? मैं जब दिल्ली में था , तो वहाँ मैंने एक बात सीखी थी, कि जब कोई भी आपका नाम पूछे, या जहाँ कहीं भी आपको अपना परिचय देना हो,तो अपने नाम को, अपने उपनाम के पहले, दो बार लेने से आप में वज़न हो न हो, पर नाम से आपके व्यक्तित्व का वज़न बढ़ जाता है। जिस दिन से यह सुना है, उस दिन से इसी तरह अपना ...
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😢😢😢'मेरी अवंतिका',को मारकर आपको क्या मिला 'शर्मा जी'जिस राजपूतानी ने अपने पिता तक को अपने स्वाभिमान के आड़े न आने दिया आखिरकार इस गन्दी राजनीती ने उसे भी निगल ही लिया शायद अब लोकतंत्र है क्यू की जो राजपूत हज़ारों वर्ष लड़के अपने राष्ट्र के अस्तित्व को बचाये रखा आज अपनों के ही आगे नतमस्तक है,और अब तो इस लोकतंत्र में उससे उसका स्वाभिमान भी छीना जा रहा है आपने एक बार अपनी कहानी से ही सही लेकिन राजपूताने को एकदम जिवंत करके रख दिया,😢😢तीन दिनों तक ये इतिहास मैं पढता रहा मैं इसे मात्र एक कहानी नही मानता इन तीन दिनों को मैंने अपने भावनाओं के सहारे जिया है😢😢😢अच्छा होता यदि आप इस राजनीती के पचड़े में नहीँ पड़ती तो शायद 'मेरी अवंतिका' जिन्दा होती😢😢।मैंने आजतक इतना भावनात्मक कुछ नही पढ़ा था तीन दिनों से मेरा दुनिया को देखने का नजरिया ही बदल गया इन तीन दिनों में मैं कितनी बार रोया एक पंक्ति को तीन तीन बार पढ़ा वजह सिर्फ एक ही है"मेरी अवंतिका"।।शायद इस घटना को मैं ताउम्र न भूल पाऊं क्यों की मै 'अवंतिका' अवंतिका सिंह चौहान को भूल नही सकता,मुझे जिस व्यक्तित्व की लड़की की तलाश थी वो मुझे 'प्रतिलिपी'के माध्यम से ही सही पर मिल गई और मैं आपको भी नही भूल पाउँगा 'मिस लेखिका'क्यों की आपने दूसरी बार रुलाया है इस 'राजपूत'को,लेकिन मुझे आपसे ऐसे समापन की उम्मीद नही थी मुझे शुरू से ही हैप्पी एंडिंग पसंद है पर आपको तो सिर्फ अपनी महत्वकांक्षाओं की पड़ी है तीन दिन से हमने समाज को त्यागकर अपना पूरा समय"मेरी अवंतिका"को दिया और अंततः आपने हमे ठग ही लिया एक सच्चे प्रेम का आपने गला घोंट दिया और उफ़्फ़ तक न किया पर हम आपकी तरह सहनशील नही है हम तो अभी भी समीक्षा करते वक्त भी निरंतर रोये जा रहे है हमे समझ नही आ रहा की इस घटना से हम बाहर कैसे निकलें😢😢।।हम 'पवन' पवन सिंह राठौर आपसे नाराज है मिस लेखिका क्यों की आपने "मेरी अवंतिका"को मार डाला लेकिन सिर्फ अपनी रचनाओं से लेकिन वो आज भी जिंदा हैं मेरे जेहन में मेरे भावनाओं में और ताउम्र रहेंगी हम तो उन्हें भूलने से रहे शायद वो 'पियूष' से भी ज्यादा खास हैं मेरे लिए😢😢।।।आपके जैसा राइटर को तो आज से पहले हमने पढ़ा नहीँ पर फिर भी हमें शिकायत है आपसे की आप रुलाती बहोत है😢😢और दूसरा मैं आपके समीक्षा के प्रतिक्रिया देने से नाराज हूं बस"जी आभार से कम नहीँ चलने वाला आपको पूरी ईमानदारी के साथ प्रतिक्रया देना चाहिए अपने पाठकों को उन्हें भी अच्छा लगेगा🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏।।।।क्या मिला आपको "मेरी अवंतिका"को मार के??? हम कभी नही भूलेंगे आपको 'शर्मा जी' सिर्फ "मेरी अवंतिका" के लिए😢😢😢😢🙏🙏🙏🙏।।।।।
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अभिधा मैम;
मैने पिछले वर्ष 'मेरी अवन्तिका' पढ़ी थी। तब से अब तक इस रचना को अपने हृदय और मस्तिष्क से नहीं निकाल पायी इसलिए एकबार फिर पढ़ने की इच्छा हुई...अध्याय 43 तक पढ़ लिया है। जीवन के उतार-चढ़ाव, प्रेम, स्नेह, मित्रता, सुख-दुख, हर्षोल्लास, श्रंगार, हास्य, व्यंग्य से और अनेक भावनाओं से सुसज्जित एक हृदयस्पर्शी उपन्यास हे 'मेरी अवन्तिका'। इसको पढ़ते हुए होंठो पर मुस्कान भी तैर जाती है, आँखे भी छलक जाती है..और यही उपक्रम निरन्तर चलता रहता है।
अभिधा मैम; एसी अद्भुत और जीवन्त रचना के लिए आपको मेरे हृदय से बहुत सम्मान और धन्यवाद है।
जीवन भर संघर्ष करना, इतना इन्तज़ार उस पर इतना धैर्य, इतना दर्द सहने के बाद पियूष और अवन्तिका के मिलन पर खुशी से आँखे भर आती है । लेकिन इस रचना का अन्त बहुत दुःखद है मैम;.. अवन्तिका और पियूष का जीवन भर के लिए एक-दूसरे के साथ नही रह पाना, अवन्तिका की मौत, जीवन भर के लिए पियूष का अकेला रह जाना, अवन्तिका के बिना पियूष क्या है... सच मे मैम ये अन्त बहुत रुलाता है आँसू नहीं रुकते..
इतना दुःखद अन्त! क्यों मैम? क्या कोई और अन्त नहीं हो सकता है इस रचना का...
बस हो सके तो इसका अन्त बदल दीजिए मैम ।
एकबार फिर से आपको मेरे हृदय की गहराइयों से सम्मान और धन्यवाद।
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"मेरी अवंतिका '' इस रचना से. अच्छी रचना ओर कोई हो सकती है क्या ?? इससे अच्छा ओर कोई क्या लिखेगा , अवंतिका मेरे जीवन का आज़ बहोत बड़ा हिस्सा बन चुकी है पियूस ने जो दर्द सहा है वो आज मुझे लगता है की मानो जैसे मैं खुद उसको जी रहा हु पर आज मैने एक परचे मे लिख के रख दिया की काश अवंतिका हमेशा पियूस के साथ होती ओर इसके साथ ही मैं शांत हो गया हु
अभीधा जी मेरे पास शब्द नहीं है आपकी " मेरी अवंतिका " आज कई दिलो मे राज कर रही है ज़िनमे मैं भी शामिल हु 🙏
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😢😢😢'मेरी अवंतिका',को मारकर आपको क्या मिला 'शर्मा जी'जिस राजपूतानी ने अपने पिता तक को अपने स्वाभिमान के आड़े न आने दिया आखिरकार इस गन्दी राजनीती ने उसे भी निगल ही लिया शायद अब लोकतंत्र है क्यू की जो राजपूत हज़ारों वर्ष लड़के अपने राष्ट्र के अस्तित्व को बचाये रखा आज अपनों के ही आगे नतमस्तक है,और अब तो इस लोकतंत्र में उससे उसका स्वाभिमान भी छीना जा रहा है आपने एक बार अपनी कहानी से ही सही लेकिन राजपूताने को एकदम जिवंत करके रख दिया,😢😢तीन दिनों तक ये इतिहास मैं पढता रहा मैं इसे मात्र एक कहानी नही मानता इन तीन दिनों को मैंने अपने भावनाओं के सहारे जिया है😢😢😢अच्छा होता यदि आप इस राजनीती के पचड़े में नहीँ पड़ती तो शायद 'मेरी अवंतिका' जिन्दा होती😢😢।मैंने आजतक इतना भावनात्मक कुछ नही पढ़ा था तीन दिनों से मेरा दुनिया को देखने का नजरिया ही बदल गया इन तीन दिनों में मैं कितनी बार रोया एक पंक्ति को तीन तीन बार पढ़ा वजह सिर्फ एक ही है"मेरी अवंतिका"।।शायद इस घटना को मैं ताउम्र न भूल पाऊं क्यों की मै 'अवंतिका' अवंतिका सिंह चौहान को भूल नही सकता,मुझे जिस व्यक्तित्व की लड़की की तलाश थी वो मुझे 'प्रतिलिपी'के माध्यम से ही सही पर मिल गई और मैं आपको भी नही भूल पाउँगा 'मिस लेखिका'क्यों की आपने दूसरी बार रुलाया है इस 'राजपूत'को,लेकिन मुझे आपसे ऐसे समापन की उम्मीद नही थी मुझे शुरू से ही हैप्पी एंडिंग पसंद है पर आपको तो सिर्फ अपनी महत्वकांक्षाओं की पड़ी है तीन दिन से हमने समाज को त्यागकर अपना पूरा समय"मेरी अवंतिका"को दिया और अंततः आपने हमे ठग ही लिया एक सच्चे प्रेम का आपने गला घोंट दिया और उफ़्फ़ तक न किया पर हम आपकी तरह सहनशील नही है हम तो अभी भी समीक्षा करते वक्त भी निरंतर रोये जा रहे है हमे समझ नही आ रहा की इस घटना से हम बाहर कैसे निकलें😢😢।।हम 'पवन' पवन सिंह राठौर आपसे नाराज है मिस लेखिका क्यों की आपने "मेरी अवंतिका"को मार डाला लेकिन सिर्फ अपनी रचनाओं से लेकिन वो आज भी जिंदा हैं मेरे जेहन में मेरे भावनाओं में और ताउम्र रहेंगी हम तो उन्हें भूलने से रहे शायद वो 'पियूष' से भी ज्यादा खास हैं मेरे लिए😢😢।।।आपके जैसा राइटर को तो आज से पहले हमने पढ़ा नहीँ पर फिर भी हमें शिकायत है आपसे की आप रुलाती बहोत है😢😢और दूसरा मैं आपके समीक्षा के प्रतिक्रिया देने से नाराज हूं बस"जी आभार से कम नहीँ चलने वाला आपको पूरी ईमानदारी के साथ प्रतिक्रया देना चाहिए अपने पाठकों को उन्हें भी अच्छा लगेगा🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏।।।।क्या मिला आपको "मेरी अवंतिका"को मार के??? हम कभी नही भूलेंगे आपको 'शर्मा जी' सिर्फ "मेरी अवंतिका" के लिए😢😢😢😢🙏🙏🙏🙏।।।।।
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मैने पिछले वर्ष 'मेरी अवन्तिका' पढ़ी थी। तब से अब तक इस रचना को अपने हृदय और मस्तिष्क से नहीं निकाल पायी इसलिए एकबार फिर पढ़ने की इच्छा हुई...अध्याय 43 तक पढ़ लिया है। जीवन के उतार-चढ़ाव, प्रेम, स्नेह, मित्रता, सुख-दुख, हर्षोल्लास, श्रंगार, हास्य, व्यंग्य से और अनेक भावनाओं से सुसज्जित एक हृदयस्पर्शी उपन्यास हे 'मेरी अवन्तिका'। इसको पढ़ते हुए होंठो पर मुस्कान भी तैर जाती है, आँखे भी छलक जाती है..और यही उपक्रम निरन्तर चलता रहता है।
अभिधा मैम; एसी अद्भुत और जीवन्त रचना के लिए आपको मेरे हृदय से बहुत सम्मान और धन्यवाद है।
जीवन भर संघर्ष करना, इतना इन्तज़ार उस पर इतना धैर्य, इतना दर्द सहने के बाद पियूष और अवन्तिका के मिलन पर खुशी से आँखे भर आती है । लेकिन इस रचना का अन्त बहुत दुःखद है मैम;.. अवन्तिका और पियूष का जीवन भर के लिए एक-दूसरे के साथ नही रह पाना, अवन्तिका की मौत, जीवन भर के लिए पियूष का अकेला रह जाना, अवन्तिका के बिना पियूष क्या है... सच मे मैम ये अन्त बहुत रुलाता है आँसू नहीं रुकते..
इतना दुःखद अन्त! क्यों मैम? क्या कोई और अन्त नहीं हो सकता है इस रचना का...
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