जब तुम नहीं थी तो जिंदगी भी ज़िन्दगी नही थी। माना कि ग़मग़ी नहीं थी पर इतनी हसीं भी नहीं थी। फिर ईश्वर के आशीर्वाद से तुम आयी, सँग अपने खुशियो का खजाना लायी , तुम्हारी हँसी में है लहरों सी चपलता, ...
मैं वो हूँ जिसे पढ़ने के लिए अक्षर बोध से ज़्यादा भाव बोध अनिवार्य है ।
शांत, शुद्ध और निश्छल होना ही जीवंतता है । सिर्फ श्वासों का आयाम ही जीवन नहीं है।
स्वयं पर विश्वास और परमेश्वर का साथ, बस ये बना रहे बाकी सब तो फिर संभव हो ही जाता है ।
जीवन का फलसफा ,,, स्वस्थ रहो, मस्त रहो, व्यस्त रहो।
सारांश
मैं वो हूँ जिसे पढ़ने के लिए अक्षर बोध से ज़्यादा भाव बोध अनिवार्य है ।
शांत, शुद्ध और निश्छल होना ही जीवंतता है । सिर्फ श्वासों का आयाम ही जीवन नहीं है।
स्वयं पर विश्वास और परमेश्वर का साथ, बस ये बना रहे बाकी सब तो फिर संभव हो ही जाता है ।
जीवन का फलसफा ,,, स्वस्थ रहो, मस्त रहो, व्यस्त रहो।
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बधाई हो! मेरी आत्मजा, मेरी परछाई प्रकाशित हो चुकी है।. अपने दोस्तों को इस खुशी में शामिल करे और उनकी राय जाने।