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मेरी अधूरी पहचान

4.2
20359

इस कहानी में हम समाज के झूठे और फरेबी लोगो के बारे में पढ़ेगे।कैसे विवाह के लिए चिंतित एक पिता की मजबूरी दिखाई देगी।आगे पढ़ें

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लेखक के बारे में
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Akanskha Rajeev Mishra

नाम- आकांक्षा राजीव मिश्रा जन्म- 21 दिसम्बर 1991 जन्मस्थान- आज़ाद नगर हरदोई(उत्तर प्रदेश) शिक्षा-स्नातक (बी.एस. सी). लाल बहादुर शास्त्री परास्नातक कॉलेज गोंडा. लेखन- दैनिक और साप्ताहिक अखबारों में कविताये.लघुकथाएं, शायरी,सामाजिक लेख, रुचि- कविताये लिखना पसन्द है ,समाजसेविका बनकर लोगो की सेवा करना चाहती हूं। और जिंदगी का यही उद्देश्य है। संगीत सुनना,और कुकिंग करना भी पसन्द है। लेखन की शुरुआत-  मैंने कविताये तो  2016 में लिखी थी।मगर कभी सोचा ही नही की इनको लोगो तक पहुँच सके। हिन्दी साहित्य में आने में आने की वजह यही है कि मैं हिन्दी को समझूँ और लोगो तक अपने विचारों को व्यक्त करूँ। और मैं बहुत शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मेरी कविताओं को मुकाम तक पहुँचाया ।मैं बहुत आभारी हूँ कि मेरी रचनाओं लोगो को पसन्द आ रही है। मुझे अतिप्रसन्नता है कि मेरी रचनाये लोगो ने पसन्द की।बस यही एकमात्र उद्देश्य है कि हिन्दी साहित्य जगत में लोगो तक मेरी रचनाये पढ़ी जाएं। कहानियां लिखना भी पसन्द है।और अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है ।जज्बातो से लिखी मेरी ये सभी रचनाये है। ट्विटर एकाउंट -UpasnaPandey4. ब्लॉग-Upasnamerasafr.blogspot.in ई- मेल- akankshaPandey@ gmail.com फेसबुक-Upasna Pandey(आकांक्षा)

समीक्षा
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    16 मई 2018
    आदरणीया आकांक्षा पाण्डेय जी, इस कहानी का शीर्षक कहानी के अनुरूप है। आपने छोटी सी कहानी से बहुत सीधा सन्देश दिया है। इसलिये कहानी अपने सामाजिक दायित्व को पूरा करती हुई दिखती है। आपकी यह कहानी पढकर मुझे जगदीश चन्द्र माथुर जी की प्रसिद्ध एकांकी "रीढ़ की हड्डी" की याद आ गयी। आपकी सहित्य में रुचि और उसे ब्यक्त करने की छटपटाहट आज के इस धुंध भरे वातावरण में तेज रोशनी की तरह है। आप इसी साइट पर मेरी रचनायें पढें और अपने विचार दें। आप marmagyanet.blogspot.com पर मेरा ब्लॉग विसिट करें और वहीं पर अपनी टिप्पणी भी दें। मेरी लिखी दूसरी पुस्तक उपन्यास के रूप में "डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन" के नाम से हिंद युग्म से प्रकाशित हो चुकी है। पुस्तक के कथानक के बारे में: यह छोटे शहर में स्थापित ऐसे डिग्री कॉलेज की कहानी है जिसके पास से रेलवे लाइन गुजरती है। इसलिए विद्यार्थी अपने पीरियड के विषय से अधिक उस ओर से गुजरने वाली ट्रेन के समय की जानकारी रखते हैं। कॉलेज की पढाई करते - करते समय की गलियों से यूँ गुजरना। कुछ तोंद वाले सर, कुछ दुबले -पतले सर, कुछ चप्प्लों में सर, कुछ जूतों में सर। जैसे कॉलेज की दीवार से सटे रेलवे लाईन पर ट्रेनों का गुजरना। इसी बीच पनपता प्यार, विज्ञान और अर्थशास्त्र के बीच। छात्र परिषद के चुनाव की घोषणा होते ही बाहरी तत्वों के घुसपैठ से, कॉलेज के शान्त वातावरण का पुल - सा कम्पित होना, थर्राना। ये सब कुछ और इससे भी अधिक बहुत कुछ... पढें उपन्यास "डिवाईडर पर कॉलेज जंक्शन" में*** अभी यह आमज़ोन के साइट से ऑन लाईन मात्र 76रु में मँगाई जा सकती है। इस लिंक पर जाकर मंगाएं: link: http://amzn.to/2Ddrwm1 आमज़ोन पर customer review लिखें और मेरी लिखी पुस्तक "छाँव का सुख" डाक द्वारा मुफ्त प्राप्त करें। अपना पता मेरे ई मेल : [email protected] पर भेज दें। आप यूट्यूब के मेरे channel : BnmRachnaWorld Lit पर जाकर मेरी रचनाओं के ओडियो और वीडियो को देखें, लाइक करें और subscribe भी करें।
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    अचलेश
    17 नवम्बर 2018
    अधिकतर बेटी के पिता की मजबूरी बेमेल जोड़ियां के रूप में परिणित हो जाती है,,,मुझे लगता है,,शायद हमें अन्य निर्णयों की तरह इस महत्वपूर्ण निर्णय को भी उन्हें लेने देना चाहिए,,माता पिता को गुणावगुण को इंगित करना चाहिए ।आपने अच्छा लिखा है,,कुछ जगहों पर अनावश्यक जल्दबाजी कथानक को थोड़ा कमजोर करते से प्रतीत होते हैं ।प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
  • author
    NareshPal Kashyap
    11 मार्च 2018
    अच्छी स्टोरी
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    आपकी रेटिंग

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    16 मई 2018
    आदरणीया आकांक्षा पाण्डेय जी, इस कहानी का शीर्षक कहानी के अनुरूप है। आपने छोटी सी कहानी से बहुत सीधा सन्देश दिया है। इसलिये कहानी अपने सामाजिक दायित्व को पूरा करती हुई दिखती है। आपकी यह कहानी पढकर मुझे जगदीश चन्द्र माथुर जी की प्रसिद्ध एकांकी "रीढ़ की हड्डी" की याद आ गयी। आपकी सहित्य में रुचि और उसे ब्यक्त करने की छटपटाहट आज के इस धुंध भरे वातावरण में तेज रोशनी की तरह है। आप इसी साइट पर मेरी रचनायें पढें और अपने विचार दें। आप marmagyanet.blogspot.com पर मेरा ब्लॉग विसिट करें और वहीं पर अपनी टिप्पणी भी दें। मेरी लिखी दूसरी पुस्तक उपन्यास के रूप में "डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन" के नाम से हिंद युग्म से प्रकाशित हो चुकी है। पुस्तक के कथानक के बारे में: यह छोटे शहर में स्थापित ऐसे डिग्री कॉलेज की कहानी है जिसके पास से रेलवे लाइन गुजरती है। इसलिए विद्यार्थी अपने पीरियड के विषय से अधिक उस ओर से गुजरने वाली ट्रेन के समय की जानकारी रखते हैं। कॉलेज की पढाई करते - करते समय की गलियों से यूँ गुजरना। कुछ तोंद वाले सर, कुछ दुबले -पतले सर, कुछ चप्प्लों में सर, कुछ जूतों में सर। जैसे कॉलेज की दीवार से सटे रेलवे लाईन पर ट्रेनों का गुजरना। इसी बीच पनपता प्यार, विज्ञान और अर्थशास्त्र के बीच। छात्र परिषद के चुनाव की घोषणा होते ही बाहरी तत्वों के घुसपैठ से, कॉलेज के शान्त वातावरण का पुल - सा कम्पित होना, थर्राना। ये सब कुछ और इससे भी अधिक बहुत कुछ... पढें उपन्यास "डिवाईडर पर कॉलेज जंक्शन" में*** अभी यह आमज़ोन के साइट से ऑन लाईन मात्र 76रु में मँगाई जा सकती है। इस लिंक पर जाकर मंगाएं: link: http://amzn.to/2Ddrwm1 आमज़ोन पर customer review लिखें और मेरी लिखी पुस्तक "छाँव का सुख" डाक द्वारा मुफ्त प्राप्त करें। अपना पता मेरे ई मेल : [email protected] पर भेज दें। आप यूट्यूब के मेरे channel : BnmRachnaWorld Lit पर जाकर मेरी रचनाओं के ओडियो और वीडियो को देखें, लाइक करें और subscribe भी करें।
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    अचलेश
    17 नवम्बर 2018
    अधिकतर बेटी के पिता की मजबूरी बेमेल जोड़ियां के रूप में परिणित हो जाती है,,,मुझे लगता है,,शायद हमें अन्य निर्णयों की तरह इस महत्वपूर्ण निर्णय को भी उन्हें लेने देना चाहिए,,माता पिता को गुणावगुण को इंगित करना चाहिए ।आपने अच्छा लिखा है,,कुछ जगहों पर अनावश्यक जल्दबाजी कथानक को थोड़ा कमजोर करते से प्रतीत होते हैं ।प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
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    NareshPal Kashyap
    11 मार्च 2018
    अच्छी स्टोरी