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मेरा संबल

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तेरी दिखाई राह पर जो चलता है , जीवन का हर लक्ष्य पा जाता है ! तेरे मन अनुरूप जो कर्म करता , हर संकल्प सफल सिद्ध हो जाता है ! कुंठित मन विकार भाव अर्जन करता , दिग्भ्रमित दृष्टिहीन विवेकहीन हो जाता ...

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लेखक के बारे में
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Purushottam Choudhury

वियोग में संयोग में भी, विरह में मिलन में भी, अश्रु ही प्रेम प्रतीक भी, अश्क ही प्रेम प्राकट्य भी!! पुरूषोत्तम चौधरी

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