जज्बातों के दर्दों को कलम की स्याही में पिरोता हूँ,मैं कोई लेखक तो नहीं बस अपने दर्दों को लिखता हूँ।।
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चाक दामन रफू करके लिखता हूँ मैं, जख्म से गुफ्तगू करके लिखता हूँ मैं।
दर्द गाने को भी हौसला चाहिए,आंसुओं से बजू करके लिखता हूँ मैं।।
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कभी वक्त हो तो पढ़ लेना कविताएं हमारी क्यूंकि हम कविताएं नहीं जज्बात लिखते हैं।।
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वादा है हमारा हमारी कविता पढ़ी तो जज़्बातों के समंदर में डूब जाओगे।
एक बार जरा पढ़ के तो देखो हमारी कविताओँ में अपनापन पाओगे।।
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