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मातृभक्त

4.4
1617

नवरात्रि के दिन थे संजय सपरिवार मातारानी का मंडप सजाने मे तल्लीन थां। तभी उसके दोस्त राजेश का आना हुआं आते ही वह बोल पडा ’’वाह संजय इस बार मां कि बडी मनोरम मूरत पा गए हो’’ ’’संजय ने मुस्कुराते हुए ...

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लेखक के बारे में
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गोपेश शुक्ल

गोपेश आर शुक्ल प्रयागराज उत्तर प्रदेश

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Himanshu Goswami
    06 जनवरी 2019
    चिंतनशील लेख है, पढ़कर बड़ा अच्छा लगा
  • author
    Vivek Khare
    02 जून 2021
    माँ भी देवी का रूप हैं और पत्नी भी कोई अन्नपूर्णा, कोई सरस्वती, कोई लक्ष्मी, कोई दुर्गा और कोई चंडी और पुरुष है देवी के साथ रहने वाला वानर वीर 😄😄😄
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    09 जून 2021
    अपनी माँ की उपेक्षा करके आप माता रानी को प्रसन्न नहीं कर सकते । सुंदर प्रेरक कहानी ।
  • author
    आपकी रेटिंग

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  • author
    Himanshu Goswami
    06 जनवरी 2019
    चिंतनशील लेख है, पढ़कर बड़ा अच्छा लगा
  • author
    Vivek Khare
    02 जून 2021
    माँ भी देवी का रूप हैं और पत्नी भी कोई अन्नपूर्णा, कोई सरस्वती, कोई लक्ष्मी, कोई दुर्गा और कोई चंडी और पुरुष है देवी के साथ रहने वाला वानर वीर 😄😄😄
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    09 जून 2021
    अपनी माँ की उपेक्षा करके आप माता रानी को प्रसन्न नहीं कर सकते । सुंदर प्रेरक कहानी ।