एक व्यक्ति सुनसान निर्जन स्थान पर सड़क के किनारे एक पत्थर पर बैठा सोच में डूबा हुआ था . पूर्णिमा का चाँद रोशनी फैला रहा था . पास की झाड़ियों से आवाज़ आई लगा जैसे कोई जानवर आ कर छुप गया है . थोड़ी देर ...
लोग क्या सोचेंगे सोचकर अगर कलम उठाएंगे ...
ज़िंदगी भर हम कभी भी सच नहीं लिख पाएंगे ...
अशोक "अजनबी"
सभी मित्रों व पाठकों का आभार जिन्होंने मेरी रचनाऐं पढ़ी व समीक्षा की 🙏🙏🙏
सारांश
लोग क्या सोचेंगे सोचकर अगर कलम उठाएंगे ...
ज़िंदगी भर हम कभी भी सच नहीं लिख पाएंगे ...
अशोक "अजनबी"
सभी मित्रों व पाठकों का आभार जिन्होंने मेरी रचनाऐं पढ़ी व समीक्षा की 🙏🙏🙏
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