पीड़ा बनी प्रार्थना मन प्रार्थी हो गया। घनीभूत पीड़ाओं के जंगल में खोया, अभ्यन्तर की गहराई में जाकर रोया। अपनी ही चंचल गति का पारखी हो गया। देह, प्राण, मन अलग-अलग कर जबसे जाना, विषय वासना की ...
पीड़ा बनी प्रार्थना मन प्रार्थी हो गया। घनीभूत पीड़ाओं के जंगल में खोया, अभ्यन्तर की गहराई में जाकर रोया। अपनी ही चंचल गति का पारखी हो गया। देह, प्राण, मन अलग-अलग कर जबसे जाना, विषय वासना की ...