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मझधार

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जा फंसा मैं अपने मुसीबत के मझधार, कैसे निकलूं यहां से, क्या होगी जीत या हार, जाने कब होगा सवेरा मेरी जिंदगी में, जहां पनपते नए सपने उभरती सादगी में, कशमकश में फंसा मैं यह सोचता रहा, हालात का मारा ...

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Sneha Bhadra
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