मैं अधीर इसीलिए नहीं होता.... खुद को किंग कहने वाला आज लटका हुआ मुंह लेकर आर्थर रोड जेल के दरवाजे पहुंचा तो यह पोस्ट लिख रहा हूं। ठीक एक वर्ष पहले की बात है। पिछले वर्ष इसी अक्टूबर माह ...
बधाई हो! मैं अधीर इसीलिए नहीं होता....मुझे विश्वास है कबीर के इस दोहे पर...
धीरे धीरे रे मना, धीरे सबकुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए।। प्रकाशित हो चुकी है।. अपने दोस्तों को इस खुशी में शामिल करे और उनकी राय जाने।
रिपोर्ट की समस्या
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