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महात्मा प्रिंस क्रोपटकिन

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3.7

''मुझे क्‍या अधिकार है कि मैं विज्ञान के अध्‍ययन से प्राप्‍त इस अमूल्‍य सुख को भोगूँ? मेरे इतने रूसी भाई जब तक जार द्वार पद दलित होते रहेंगे तब तक मैं अपनी ज्ञान-वासना को तृप्‍त कर, अपने जीवन की ...