दस वर्षीय मधुरिमा ने छत से आज पुनः अपनी मां को चूल्हे की वजह से खांसते पाया, उसके छोटे भाई बहन वहीं बाग में खेल रहे थे लेकिन मधुरिमा को अपनी मां के भव्य मायके के दृश्य याद आते हैं। नहीं! उसके नाना ...
यकीन है एक वयस्क मन व बाल हृदय का:
ज़रूरी नहीं हर कदम तय हो जिंदगी का,
गर डगर में सीख मिले तो चार कदम फिज़ूल भी सही!
मेरी गुंजिता के श्रोता बनने के लिए धन्यवाद🙏
सारांश
यकीन है एक वयस्क मन व बाल हृदय का:
ज़रूरी नहीं हर कदम तय हो जिंदगी का,
गर डगर में सीख मिले तो चार कदम फिज़ूल भी सही!
मेरी गुंजिता के श्रोता बनने के लिए धन्यवाद🙏
समीक्षा
आपकी रेटिंग
रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
आपकी रेटिंग
रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
आपकी रचना शेयर करें
बधाई हो! ' मधुरिमा ' प्रकाशित हो चुकी है।. अपने दोस्तों को इस खुशी में शामिल करे और उनकी राय जाने।