pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

लोकमान्य‍ की विजय

4.5
1399

कवि-श्रेष्‍ठ मिल्‍टन की उक्ति है कि शान्तिकाल की विजय युद्धकाल की विजयी से कम नहीं होती। हमारा विचार है कि शान्तिकाल की विजय अधिक स्‍थायी, अधिक गौरवप्रद और अधिक वास्‍तविक होती है। शान्तिकाल की विजय सिद्धांतों की विजय होती है, वै नैतिक, मानसिक और आध्‍यात्मिक विजय होती है। वह विजित के मन, मस्तिष्‍क और आत्‍मा पर अधिकार कर लेती है। उससे विजित के हृदय में विजेता का भय और आतंक नहीं छा जाता, बल्कि विजित विजेता का अनुयायी, प्रशंसक और भक्‍त हो जाता है। शान्तिकाल की विजय शारीरिक मृत्‍यु के बाद भी संभव ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में

जन्म : 26 अक्टूबर, 1890, अतरसुइया, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) भाषा : हिंदी विधाएँ : पत्रकारिता, निबंध, कहान मुख्य कृतियाँ गणेशशंकर विद्यार्थी संचयन (संपादक - सुरेश सलिल) संपादन : कर्मयोगी, सरस्वती, अभ्युदय, प्रताप निधन 25 मार्च, 1931 कानपुर

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ankit Pandey
    03 अक्टूबर 2018
    अति सुंदर
  • author
    Ramesh Saini
    08 जून 2018
    good
  • author
    Dinesh Dubey
    29 अगस्त 2017
    uttam lekhan
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ankit Pandey
    03 अक्टूबर 2018
    अति सुंदर
  • author
    Ramesh Saini
    08 जून 2018
    good
  • author
    Dinesh Dubey
    29 अगस्त 2017
    uttam lekhan