लो आज पुनः खामोश हो चली, एक मुखर आवाज़, आंखों में दर्द का समंदर लहर रहा था, जीते जी उसे न समझे जाने का, कष्ट चेहरे पर नज़र आ रहा था। जुबाँ को लकवा मार चुका था, जीवन रक्षक उपकरणों के सहारे, कुछ ...
लो आज पुनः खामोश हो चली, एक मुखर आवाज़, आंखों में दर्द का समंदर लहर रहा था, जीते जी उसे न समझे जाने का, कष्ट चेहरे पर नज़र आ रहा था। जुबाँ को लकवा मार चुका था, जीवन रक्षक उपकरणों के सहारे, कुछ ...