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लंगोट एक प्रथा

4.6
82595

परम्पराओं का देश है भारत जहाँ हर क़दम पर रीती रिवाज़ हैं। प्रथाओं की जकड़न है।पर अफ़सोस रीति रिवाज़ हों या प्रथा ढोना औरत को ही पड़ता है। ऐसी बेड़ियों जकड़ी हूँ मैं सैरंधी.. जिसको एक प्रथा ने द्रौपदी ...

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लेखक के बारे में
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Adeetya M. Jhainsi

नमस्कार दोस्तों मैं अदीत्य एम्. झाइंसी , पेशे से एक लेखक और फिल्म निर्दशक हूं। मेरी सभी कहानियां,कानूनी तौर पर रजिस्ट्रड है। इनका किसी भी तरह से इस्तेमाल कॉपीराइट एक्ट के तहत दंडनीय अपराध होगा धन्यवाद

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    dk r
    01 మే 2022
    आदरणीय श्रीमान लेखक महोदय, अगर लेखन के लिहाज से देखा जाए तो यह कहानी एक काफी अच्छी रचना है। परिस्थितियों के अनुसार शब्दों का चयन एवं वाक्यों का क्रमबद्ध होना दर्शाता है कि आप लेखक बहुत अच्छे हैं, अच्छे कहानीकार हैं। और अगर कहानी को मार्मिक बनाना उद्देश्य था तो उस लिहाज से आप प्रशंसा के पात्र हैं। लेकिन अगर मानवीय मूल्य, संवेदनाओं एवं संस्कारों के लिहाज से देखा जाए तो यह रचना मुझे 'निम्नस्तरीय' लगी...!! टिप्पणियों में 90% से ज्यादा लोग धनंजय एवं सैरंध्री के किरदार को जस्टिफाई कर रहे हैं अर्थात सही ठहरा रहे हैं कि उन्होंने जो किया अच्छा किया... लेकिन मैं उन लोगों से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं क्योंकि अगर हम इन दोनों करैक्टर को सही ठहरा रहे हैं तो इसका मतलब है कि हम लोग मानसिक एवं नैतिक पतन की ओर अग्रसर हो रहे हैं... कहानी में एवं टिप्पणियों में सैरंध्री एवं धनंजय को जस्टिफाई करने के लिए जो तर्क दिए गए हैं उनको तर्क नहीं 'कुतर्क' कहते हैं... सैरंध्री को मैं यहां पर वेश्या के समतुल्य मानता हूं क्योंकि शारीरिक संबंध पति के अलावा 1 से बनाए जाएं या 10 लोगों से बनाए जाएं, वह वैश्या ही कहलाएगी... मैं मानता हूं कि हर नारी की इच्छा होती है कि उसको उसकी भावनाओं को समझने वाला एवं सम्मान करने वाला पति मिले... तो क्या उसके पति 'धर्मा' में वह गुण नहीं थे ? वह भी तो उसको प्यार करता था। याद रखो... नारी पूज्यनीय भी है और वंदनीय भी, लेकिन यह हक केवल समर्पण को मिला है स्वच्छंदता को नहीं...!! धनंजय को मैं एक कामातुर, लंपट व्यक्ति ही समझता हूं, वह लंगोट का कच्चा निकला... अगर वह लंगोट का पक्का होता तो बेशक गांव वालों की नजर में, भाई के वापस आने तक, वह लंगोट प्रथा अपना लेता लेकिन वास्तव में भाभी के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाता... गांव वाले क्या उसके 'शयनकक्ष' में उसे देखने आ रहे थे कि वह क्या कर रहा है या क्या नहीं कर रहा है...!! उसका कर्तव्य होना चाहिए था कि वह अपने भाई एवं भाभी दोनों के सम्मान की रक्षा करता...!! अम्मा अर्थात सैरंध्री की सास को मैं एक 'विक्षिप्त' मानसिकता की औरत कह सकता हूं जो खुद एक औरत होते हुए भी दूसरी औरत को 2 मर्दों के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव बनाती है अन्यथा उम्र दराज होकर अपने अनुभव का लाभ लेकर वह कोई दूसरा सही रास्ता निकाल सकती थी। कहानी में अगर वास्तव में कोई दया का पात्र है तो वह व्यक्ति है 'धर्मा'... उसने अपना पुत्र धर्म निभाया, भाई का धर्म भी निभाया, पति धर्म भी निभाया... पूरे परिवार के लिए सोचा... लेकिन बदले में उसे क्या मिला.. धोखा!, बेवफाई!, अकेलापन!! सोचो जरा कितना 'ठगा' सा महसूस कर रहा होगा वह खुद को...!! कैसा दिल टूटा होगा उसका...!! विरह और जुदाई की आग में कैसे काटी होगी उसने अपनी बाकी जिंदगी...!! अतः गलत लोगों के महिमामंडन से बचें ...समाज में गलत संदेश जाता है और हमारा यूथ इससे प्रेरणा लेकर गलत काम ही करता है...!! मान्यवर! यह मेरा दृष्टिकोण है अगर किसी भाई बहन को गलत लगा हो तो उसके लिए क्षमा... मार्गदर्शन के लिए अगर कोई मेरी टिप्पणी पर अपने विचार रखना चाहैं तो सम्मान पूर्वक आमंत्रित हैं...!! धन्यवाद! d.k. rana
  • author
    Narendra Patil
    21 ఏప్రిల్ 2022
    आपने विषय अच्छा लिया है महाशय,लेकीन आप कृपया द्रौपदी माता के बारे मे कूछ बोलने से पहले मूल महाभारत संहिता पढ लेना चाहिए था,द्रौपदी पांच महासतीयों मे से एक है, आपको उस परम पवित्र सती के बारे मे ऐसा कूछ बोलते हुये कूछ भी नहीं लगा? क्या हम इत्ने नीचे गिरते जा रहे हैं की साक्षात पतिव्रता की आदर्श द्रौपदी के बारे मे आज एक हिंदू ही आनाप शनाप बोल रहे है वो भी बडे आत्मविश्वास से? मूल महाभारत संहिता मे ऐसा कूछ भी नहीं है की उसके पांच पती थे!!! ये सब घिनौनी बाते लिखते हूये आपको कैसे कूछ नहीं लगा
  • author
    mona ji
    07 ఏప్రిల్ 2021
    उफफ क्या कहुँ मैं आपकी कहानियों में खो सी जाती हूँ , जैसे सब कुछ आँखो के सामने हो रहा है, हमेशा से औरत को सिर्फ अपनी इच्छा पूरी करने के लिये ही माना जाता है, धनंजय का जो चरित्र है उसने मेरा दिल छू लिया, कम से कम उसने सैरंधी को प्यार किया तो उसका मान भी रक्खा, सैरंधी ने भी हिम्मत दिखाई जो दुबारा अपना मान नहीं खोना चाहती थी, कुछ जगह आज भी ऐसी कुप्रथाएँ आज भी सुनने को मिल जाती है, बेहतरीन👌👌👌👌
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    dk r
    01 మే 2022
    आदरणीय श्रीमान लेखक महोदय, अगर लेखन के लिहाज से देखा जाए तो यह कहानी एक काफी अच्छी रचना है। परिस्थितियों के अनुसार शब्दों का चयन एवं वाक्यों का क्रमबद्ध होना दर्शाता है कि आप लेखक बहुत अच्छे हैं, अच्छे कहानीकार हैं। और अगर कहानी को मार्मिक बनाना उद्देश्य था तो उस लिहाज से आप प्रशंसा के पात्र हैं। लेकिन अगर मानवीय मूल्य, संवेदनाओं एवं संस्कारों के लिहाज से देखा जाए तो यह रचना मुझे 'निम्नस्तरीय' लगी...!! टिप्पणियों में 90% से ज्यादा लोग धनंजय एवं सैरंध्री के किरदार को जस्टिफाई कर रहे हैं अर्थात सही ठहरा रहे हैं कि उन्होंने जो किया अच्छा किया... लेकिन मैं उन लोगों से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं क्योंकि अगर हम इन दोनों करैक्टर को सही ठहरा रहे हैं तो इसका मतलब है कि हम लोग मानसिक एवं नैतिक पतन की ओर अग्रसर हो रहे हैं... कहानी में एवं टिप्पणियों में सैरंध्री एवं धनंजय को जस्टिफाई करने के लिए जो तर्क दिए गए हैं उनको तर्क नहीं 'कुतर्क' कहते हैं... सैरंध्री को मैं यहां पर वेश्या के समतुल्य मानता हूं क्योंकि शारीरिक संबंध पति के अलावा 1 से बनाए जाएं या 10 लोगों से बनाए जाएं, वह वैश्या ही कहलाएगी... मैं मानता हूं कि हर नारी की इच्छा होती है कि उसको उसकी भावनाओं को समझने वाला एवं सम्मान करने वाला पति मिले... तो क्या उसके पति 'धर्मा' में वह गुण नहीं थे ? वह भी तो उसको प्यार करता था। याद रखो... नारी पूज्यनीय भी है और वंदनीय भी, लेकिन यह हक केवल समर्पण को मिला है स्वच्छंदता को नहीं...!! धनंजय को मैं एक कामातुर, लंपट व्यक्ति ही समझता हूं, वह लंगोट का कच्चा निकला... अगर वह लंगोट का पक्का होता तो बेशक गांव वालों की नजर में, भाई के वापस आने तक, वह लंगोट प्रथा अपना लेता लेकिन वास्तव में भाभी के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाता... गांव वाले क्या उसके 'शयनकक्ष' में उसे देखने आ रहे थे कि वह क्या कर रहा है या क्या नहीं कर रहा है...!! उसका कर्तव्य होना चाहिए था कि वह अपने भाई एवं भाभी दोनों के सम्मान की रक्षा करता...!! अम्मा अर्थात सैरंध्री की सास को मैं एक 'विक्षिप्त' मानसिकता की औरत कह सकता हूं जो खुद एक औरत होते हुए भी दूसरी औरत को 2 मर्दों के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव बनाती है अन्यथा उम्र दराज होकर अपने अनुभव का लाभ लेकर वह कोई दूसरा सही रास्ता निकाल सकती थी। कहानी में अगर वास्तव में कोई दया का पात्र है तो वह व्यक्ति है 'धर्मा'... उसने अपना पुत्र धर्म निभाया, भाई का धर्म भी निभाया, पति धर्म भी निभाया... पूरे परिवार के लिए सोचा... लेकिन बदले में उसे क्या मिला.. धोखा!, बेवफाई!, अकेलापन!! सोचो जरा कितना 'ठगा' सा महसूस कर रहा होगा वह खुद को...!! कैसा दिल टूटा होगा उसका...!! विरह और जुदाई की आग में कैसे काटी होगी उसने अपनी बाकी जिंदगी...!! अतः गलत लोगों के महिमामंडन से बचें ...समाज में गलत संदेश जाता है और हमारा यूथ इससे प्रेरणा लेकर गलत काम ही करता है...!! मान्यवर! यह मेरा दृष्टिकोण है अगर किसी भाई बहन को गलत लगा हो तो उसके लिए क्षमा... मार्गदर्शन के लिए अगर कोई मेरी टिप्पणी पर अपने विचार रखना चाहैं तो सम्मान पूर्वक आमंत्रित हैं...!! धन्यवाद! d.k. rana
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    Narendra Patil
    21 ఏప్రిల్ 2022
    आपने विषय अच्छा लिया है महाशय,लेकीन आप कृपया द्रौपदी माता के बारे मे कूछ बोलने से पहले मूल महाभारत संहिता पढ लेना चाहिए था,द्रौपदी पांच महासतीयों मे से एक है, आपको उस परम पवित्र सती के बारे मे ऐसा कूछ बोलते हुये कूछ भी नहीं लगा? क्या हम इत्ने नीचे गिरते जा रहे हैं की साक्षात पतिव्रता की आदर्श द्रौपदी के बारे मे आज एक हिंदू ही आनाप शनाप बोल रहे है वो भी बडे आत्मविश्वास से? मूल महाभारत संहिता मे ऐसा कूछ भी नहीं है की उसके पांच पती थे!!! ये सब घिनौनी बाते लिखते हूये आपको कैसे कूछ नहीं लगा
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    mona ji
    07 ఏప్రిల్ 2021
    उफफ क्या कहुँ मैं आपकी कहानियों में खो सी जाती हूँ , जैसे सब कुछ आँखो के सामने हो रहा है, हमेशा से औरत को सिर्फ अपनी इच्छा पूरी करने के लिये ही माना जाता है, धनंजय का जो चरित्र है उसने मेरा दिल छू लिया, कम से कम उसने सैरंधी को प्यार किया तो उसका मान भी रक्खा, सैरंधी ने भी हिम्मत दिखाई जो दुबारा अपना मान नहीं खोना चाहती थी, कुछ जगह आज भी ऐसी कुप्रथाएँ आज भी सुनने को मिल जाती है, बेहतरीन👌👌👌👌