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लमहों की सरगोशियाँ

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लमहों की सरगोशियां ढूंढ रहा हूँ,उन पलों को,जो वक्त की रफ्तार का साथ न दे सके और शायद कहीं गुम हो गए। सुरमई शाम के धुँधलकों में, या लंबी उबाऊ दुपहरी में ढूँढता हूँ, उन पलों को,जो अचानक न ...

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लेखक के बारे में
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सुरेश चंद्र

अंग देश और पूर्वी मिथिला क्षेत्र से जुड़ा बचपन।टी एन बी कॉलेज और भागलपुर विश्वविद्यालय से स्नातक,स्नातकोत्तर और कानून की शिक्षा।महाविद्यालय में पाठन ,तदुपरांत टाटा स्टील की सेवा,अवकाश प्राप्ति पर्यंत। महाविद्यालय काल से ही हिंदी साहित्य के प्रति अनुराग।पड़ोस से शरत बाबू और बनफूल की रचनास्थली से मिली साहित्यिक अभिरुचि।पत्रिकाओं में लेखन।डॉ शिव प्रसाद सिंह,फणीश्वर नाथ रेणु से मिले प्रोत्साहन,पर स्टील निर्माण की रही वरीयता। अवकाश प्राप्ति के बाद, अपने सपनों की दुनियां में वापसी।और साथ वही कथाओं,और कविताओं के आकाश में उड़ान।वर्तमान में साहित्यिक संस्थाओं,जैसे सिंहभूम हिंदी साहित्य परिषद से जुड़ाव।

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