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क्या लिखूं

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4.5

क्या लिखूं मैं अब यह मेरी समझ के परे है जिंदगी का हर लम्हा निराशा से भरे हैं वक्त ने घेरा है जिस कटघरे में वो जगह रौशनी से परे है चहुंओर अंधियारा, अमावस भरी है इन सबके बीच जिंदगी पड़ी है कभी सोचता ...