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क्या छतें साफ नहीं हो सकती

4.7
271

इतने खूबसूरत शहर की सड़के दोनों तरफ ताज़ा पुती दीवारें चौराहों और नुक्कड़ों पर खूबसूरत हवेलियाँ लक-दक शीशों के पार दिखती मॉल की चमक जिसके चारों तरफ मंडराते आधुनिक पोशाकों में संवरे लोग महज 10 रुपये में ...

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लेखक के बारे में
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संगीता सेठी

विश्व की 111 हिंदी लेखिकाओं में शामिल

समीक्षा
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  • author
    mamta madheshiya
    14 ఆగస్టు 2018
    बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता है । आपकी तरह ही मेरा भी हमेशा से लोगों से यही सवाल होता है , क्या हम अपने छतों को साफ नहीं कर सकतें ??
  • author
    06 ఆగస్టు 2018
    हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ आपको । जीवन की सच्चाई को पूरी निर्ममता से उकेरती सार्थक रचना ।
  • author
    Mahesh Sharma
    15 ఆగస్టు 2018
    dimak rupi chhat ko sat rakhe dil rupi bethak khud sat ho jaegi
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    mamta madheshiya
    14 ఆగస్టు 2018
    बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता है । आपकी तरह ही मेरा भी हमेशा से लोगों से यही सवाल होता है , क्या हम अपने छतों को साफ नहीं कर सकतें ??
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    06 ఆగస్టు 2018
    हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ आपको । जीवन की सच्चाई को पूरी निर्ममता से उकेरती सार्थक रचना ।
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    Mahesh Sharma
    15 ఆగస్టు 2018
    dimak rupi chhat ko sat rakhe dil rupi bethak khud sat ho jaegi