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कृप्या! शांत रहिये!

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कृप्या! शांत रहिये! चुप रहिये! मनन करने में! ख़ुद की मदद कीजिए! देखना! जीवन जीने में एक अच्छी ख़ासी प्रबल इच्छा होगी। फिर हमें दूसरे इन्सान में भी इन्सानियत मिलेगी। अन्यथा हम अपने में भी हैवान से ...

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लेखक के बारे में
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Tilak Raj Vashisht

अक्सर मुझे अचानक विषय मिल जाते हैं। उसी वक्त मेरी कलम स्वत: चल पड़ती है। यदि किसी कारण वश मुझ से देर हो जाये तो उस समय का प्रसाद पुन: नहिं मिल पाता!

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