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" कोरा-कागज " लक्ष्मीकान्त शर्मा ' रुद्रायुष '

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" कोरा कागज " विधा : " कुण्डलिया छंद " सादर...... जीवन सीधा सरल सा, ये तो खुली किताब। कोरा कागज सा दिखे, कैसे लिखूँ हिसाब।। कैसे लिखूँ हिसाब, नही कुछ भी तो पाया, मिला प्रेम दुख दर्द, किसी से कहाँ ...

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लेखक के बारे में

*" ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञान मूर्तिं।* *द्वद्वातीतं गगन सदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्म ।* *एकं नित्यं विमल मचलं सर्वधीसाक्षीभूतं* *भावातीतं त्रिगुण रहितं सद्गुरुं तन्नमामि।।*

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