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कोलाहल

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कोलाहल प्रचंड है अंतर्मन में, किस किस को कितना समझाऊं मैं चिर विषाद विष का सा स्वाद क्यों न जीवन से लड़ जाऊं मैं विकल विकराल वन सा मन मेरा कैसे कुस्तित स्मृतियां विसराऊं मैं कुमुद कुसुम भी हुई कालिमा ...

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Shubham Prakash Bharti

लिखता तब हूँ , जब बोल नही पाता ।।

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