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कोई मिटा न सके

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गुलाबी ठण्ड की शुरूआत होने का इशारा शुरू होने वाला ही था तुम्हारा मेरे जीवन में भी आना स्वाभाविक था पहली दफा उस जिन्दगी में कानपुर शहर जाने का मौका था!दिल में अजीबो हलचल कहाँ पड़ेगा मेरा कॉलेज!! ...

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शालिनी साहू

शब्दों का मूक हो जाना पीड़ा की अन्तिम परिणति है। घाव गहरे से नासूर बने जख़्म की अन्तिम परिणति है पूर्ण कहाँ होता है हर स्वप्न रसातल की शरण में वेदना के सिन्धु में गोते लगाना अधूरे स्वप्न की अन्तिम परिणति है । ढुलक जाये जब हजारों मोती पलकों की कोरों से स्वयं को समेट लेना तब जीवन की अन्तिम परिणति है। पगडण्डियों पर चलना कहाँ आसान जब पथ का सही ज्ञान न हो अनुमान के सहारे चलते जाना तब गन्तव्य की अन्तिम परिणति है । बिखरने में अस्तित्व है सिमटने का सामने था वह स्वप्न जो अब पलकों की कोरों में ही रह गया स्वयं को इस घड़ी से उबार लेना ही जीने की अन्तिम परिणति है। शालिनी साहू ऊँचाहार, रायबरेली (उ0प्र0)

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