कीसी शाम के नूर को पलको तले छनती नही मैं कभी, पर जब से एक नजर तुम्हारी ओर देखा है तब से ये मौसम के बदलते लिबास कुछ ज्यादा ही नजर आते है मुझे, जब से तेरे दिल के शहर के बासींदो की करतूतो का पता चला है तब से तेरे कंधो से कंधा नाप कर चलती हुं, बहोत अच्छा लगता है तुम्हारे सामने अपना कद छोटा पा कर, मुझे पता है तुम अपने हिस्से से कितनी शामे चुन चुन कर रखते हो मेरे लिए, पर जब ये बीतता वक्त फासला बनाता जाता है तुम्हारे मेरे दरम्यान तब मन करता है इस वक्त को भी धोखा दे दुं, और रख दुं अपने हिस्से की चुनी ...