pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

खुशियों का पता

4
2268

दूर से हांफते हुए आते बच्‍चे ने सरकारी नल से पी सकने जितना पानी पिया और गीले हाथों में सिमट आई खुशियों को मल लिया मैली कमीज़ पर--। कूड़े की ट्रॉली में भरते हुए पिज्‍जा के खाली डिब्‍बे और प्‍लास्टिक के ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
माया मृग

माया मृग नाम मैं ने खुद रखा | परिजनों ने नाम दिया था संदीप कुमार ,जो अब सिर्फ सरकारी रिकॉर्ड में रह गया है | मेरा जन्म 26 अगस्त 1965 को फाजिल्का (पंजाब ) में हुआ | जन्म के दस दिनों बाद ही परिवार को पंजाब छोड़ हनुमानगढ़ (राजस्थान ) आना पडा , मेरे जीवन के शुरुआती 25 साल यहाँ बीते | इसके बाद जयपुर आकर बस गया |पहले शिक्षा विभाग में सरकारी नौकरी की और नौकरी छोड़कर पत्रकारिता | इसके बाद मुद्रण और प्रकाशन को व्यवसाय के रूप में चुना | प्रकाशित कृतियाँ – 1 – शब्द बोलते हैं (कविता संग्रह ) – 1988 ई. 2 – ......कि जीवन ठहर न जाए (कविता संग्रह ) – 1999 ई. 3 – जमा हुआ हरापन (कविता संग्रह } – 2013 ई. 4 – एक चुप्पे शख्स की डायरी (गद्य } – 2013 ई. 5 – कात रे मन ....कात (गद्य ) – 2013 ई.

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    अमित आनंद
    25 এপ্রিল 2021
    दादा। जादू हो आप सर्वदा, शाश्वत।
  • author
    रोहन कुमार
    29 জুন 2017
    ठीक ठाक है ! ऑल द बेस्ट
  • author
    Ravindra Narayan Pahalwan
    21 অক্টোবর 2018
    सन्तोषजनक...
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    अमित आनंद
    25 এপ্রিল 2021
    दादा। जादू हो आप सर्वदा, शाश्वत।
  • author
    रोहन कुमार
    29 জুন 2017
    ठीक ठाक है ! ऑल द बेस्ट
  • author
    Ravindra Narayan Pahalwan
    21 অক্টোবর 2018
    सन्तोषजनक...