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खोई हुई सी मैं

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न जाने क्यों, कुछ सही सा नहीं लगता, थका ये तन, मन कहीं ठहरता नहीं, भटकती हैं साँसें, अशांत है दिल, भावनाएँ जैसे अब रही ही नहीं। हँसी भी अब तो नकली सी लगती, आँखें किसी और जहाँ को खोजती, जागती हैं, फिर ...

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Shikha Srivastava
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