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खिलौने की आत्मकथा

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"वो भी क्या दिन थे जब मैं भी काम का था वो भी क्या दिन थे जब बच्चों के लिए मैं भगवान् सा था वो भी क्या दिन थे जब मुझ निर्जीव में भी किसी के बस्ते प्राण थे वो भी क्या दिन थे जब बच्चे मेरे लिए कुर्बान ...

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Utkarsh Jain
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