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खाकी मेले देखे बहुत से मैंने रंगीन, अभी फिर भी देखना कुछ बाकी है, हूं अकेला इन पथरीले से रास्तों पर, पर मन में सशक्त विचारों की झाँकी है, उम्मीदें नहीं किसी से रखी मैंने, ना राह निज स्वार्थ हेतु ...