कविता। फिर....... बेटी हो तुम इस घर की बेटी बन तुम उस घर रहना। पर उठे हाथ तुझ पर कभी तो चंडी रूप धर लेना । आभूषणों के लोग में तुम कभी मत फसना । भ्रम जाल है यह जीवन के इन पर गर्व नहीं करना । ...
कविता। फिर....... बेटी हो तुम इस घर की बेटी बन तुम उस घर रहना। पर उठे हाथ तुझ पर कभी तो चंडी रूप धर लेना । आभूषणों के लोग में तुम कभी मत फसना । भ्रम जाल है यह जीवन के इन पर गर्व नहीं करना । ...