विचार १... ताना-बाना खूब बुना, फिर खेल, नियति ने सुंदर खेला जिसको पर्वत समझा, लांघा वो तो केवल निकला ढेला पनघट पनघट मैं फिसला हूँ घाट घाट से प्यासा लौटा सूरज से नजरें मिलती, पर जीवन सिक्का निकला खोटा ...
विचार १... ताना-बाना खूब बुना, फिर खेल, नियति ने सुंदर खेला जिसको पर्वत समझा, लांघा वो तो केवल निकला ढेला पनघट पनघट मैं फिसला हूँ घाट घाट से प्यासा लौटा सूरज से नजरें मिलती, पर जीवन सिक्का निकला खोटा ...