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कौन सा पल, कब मिटा दे हस्ती!

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कौन सा पल, कब मिटा दे हस्ती। यह सोचकर भी हम रोते कहाँ हैं।। यों ग़ैरों से तो मिले न मिले कभी। यहाँ अपनों के हम, होते कहाँ हैं।। दर्द समेट लेते हैं छुपाकर दिल में। दर्द-ए-ग़म के रिश्ते, खोते कहाँ ...