pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

कटे हाथ

5
2

मर्यादा के नाम पर वो हमारी स्वायत्तता छीनते चले गए परम्परा के निर्वाह के लिए हमारे पर कतरते चले गए हम निर्वाक से खड़े रहे हथ कटे से साथ साथ उनके और वो हमारे अधिकारों को दूर कर हमसे , कर्तव्य निश्चित ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
KIRAN JHA

एक आभा सी दिख जाती है उम्मीद के प्रयासों में, आंखें कुछ स्वप्न पिरोती हैं , किरण बनीं उल्लासो में।।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है