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कर्मवीर गांधी

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3.9

संग्राम-घोर! न्‍याय और अन्‍याय का! मनुष्‍य के सर्वोच्‍च भावों और उसके सबसे नीचे भावों का। पशुता मनुष्‍यता के मुकाबले में है। एक ओर विकराल शक्ति और दूसरी ओर सौम्‍य शान्ति! एक ओर पशु-बल और दूसरी ओर धैर्य और दृढ़ता! एक ओर प्रकृति के स्‍वयंनिर्मित ठेकेदार और दूसरी ओर प्रकृति की स्‍वाभाविकता के साथ उपासना करने वाली बीसवीं शताब्‍दी! उसकी रँगरेलियों से संसार की आँखें झप गई। मोहनी मूर्ति-और संसार मोह गया। विकट जाल-मोह गये, फँस गये और सो गये! सुंदर रूप बदला। चंडिका ने अपनी भयंकर आकृति धारण की। चोट लगी - ...