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कल्पना दीदी

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अंतरिक्ष की यात्रा हकीकत या फिर ख्वाब। ऊपर उठकर धरती से पहुँचूँ वहाँ जहाँ माहताब। कितना उज्जवल कितना शीतल धरती के जो खातिर । उतर के देखूँ घूम टहलकर क्या खूब नजारा खुद के खातिर।। जब जब बात चले ...