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कलम बेचकर खा रहे

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कलम बेचकर खा रहे कलम बेचकर खा रहे,कलम सिपाही आज। मुरझाई  सी   कलम  है,  स्याही  है  नाराज।। कलम  बिकी  बाजार  में,  लेकर  मोटे दाम। ठगे  दीन  के  हक सभी, ठगा गया आवाम।। बिके  हुए  अखबार  के,  ...

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लेखक के बारे में

साहित्यकार विनोद सिल्ला

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